भाइयो मेरी जानकारी में एक मीणा भाई ऐसे हैं जो बामण और बनियों तक की शादियाँ करवाते थे। मगर 2002 के बाद से उनसे मेरा सम्पर्क नहीं है।
ये बात सही है कि हमें लोगों को मनुवाद से मुक्त करवाना है तो विकल्प देना भी हमारी ही जिम्मेदारी है।
मगर मैं माफ़ी चाहते हुए कहना चाहता हूँ कि जिस विकल्प की वास्तव में हमें जरुरत है, वो विकल्प ये नहीं है कि बामणों की जगह किसी अन्य वर्ग या जाति के लोगों को बुला कर बामणों की ही रीति से विवाह संपन्न करवाए जावें। ये शुतुरमुर्गी सोच है।
मुद्दा तो मनुवादी सोच और रीतियों को बदलने का है। यदि किसी अन्य के मार्फ़त भी हम ब्राह्मणों द्वारा थोपी गयी हिन्दूवादी और अवैज्ञानिक रीति को ही अपनाते रहे तो वैचारिक क्रांति की तो शुरू में ही हत्या हो गयी।
फिर भी शुरुआत के लिए या ब्राह्मणों के फिजीकल शिकंजे से दिखावटी मुक्ति के लिए कुछ समय के लिए ये अस्थायी उपचार अपनाया जा सकता है।
असल में तो हमारा लक्ष्य मनुवाद की मानसिक गुलामी से मुक्ति पाना होना चाहिए। जिसके लिए हमें स्थायी और व्यावहारिक विकल्प तलाशने होंगे। हम सभी बुद्धिजीवी हैं। चिंतन करना होगा। हर समस्या का समाधान और हर सुविधा/जीवनशैली का विकल्प होता है। एक दूरदर्शी विचार को आगे बढ़ाने में चिन्तन के लिए आप सभी का आभार।-05.10.2014
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